Chhath » Importance of Chhath Puja
छठ पूजा का महत्व
वर्ष में दो बार मनाये जाने वाले इस पर्व को पूर्ण आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है| पहला छठ पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है और दूसरा कार्तिक माह में| यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है| रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक शास्त्रों में भी इस पावन पर्व का उल्लेख है| हिन्दू धर्म में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है, जिसे पुरुष और स्त्री बहुत ही सहजता से पूरा करते है|
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाये जाने वाले इस पावन पर्व को ‘छठ’ के नाम जाना जाता है| इस पूजा का आयोजन पुरे भारत वर्ष में बहुत ही बड़े पैमाने पर किया जाता है| ज्यादातर उत्तर भारत के लोग इस पर्व को मनाते है| भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्ग दिया जाता है| कई लोग इस पर्व को हठयोग भी कहते है| इस वर्ष इस महापर्व का आरम्भ २४ अक्टूबर यानि मंगलवार से हो रहा है| ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बिमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है और परिवार के सदस्यों को लम्बी आयु प्रदान करती है| चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के दौरान शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है| आइये जानते है इस पर्व के हर दिन के महत्व के बारे में:
- पहला दिन: ‘नहाय खाय’ के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है| इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है| इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है और शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरम्भ करते है|
- दूसरा दिन: छठ पूजा के दुसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है| इस दिन खरना की विधि की जाती है| ‘खरना’ का असली मतलब पुरे दिन का उपवास होता है| इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है| शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है|
- तीसरा दिन: इस दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है| सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है| इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य को अर्ग दिया जाता है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के अर्ग के बाद छठी माता के गीत गाये जाते है और व्रत कथाये सुनी जाती है|
- चौथा दिन: छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है| आज के दिन सूर्य निकलने से पहले ही व्रती व्यक्ति को घाट पर पहुचना होता है और उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है| इस पावन पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोलते है|
छठ पूजा क्यों की जाती है? इस सवाल पर अनेकों ऋषियों एवं विद्यावानों के अलग-अलग राय है| इसी वजह से इस पवित्र पर्व को लेकर कई कथाएँ सामने आती है| इनमें से प्रमुख कहानियां कुछ इस प्रकार है:
- आचार्य विपिन शास्त्री का कहना है कि जब भगवान श्री राम ने रावन को मार कर लंका पर विजय हासिल की थी, तब अयोध्या वापस आ कर उन्होंने सूर्यवंशी होने के अपने कर्तव्य को पूरा करने हेतु अपने कुल देवता भगवान सूर्य की आराधना की थी| उन्होंने देवी सीता के साथ इस पावन व्रत को रखा था| सरयू नदी में शाम और सुबह सूर्य को अर्ग दे कर उन्होंने अपने व्रत को पूर्ण किया| उन्हें देख कर आम व्यक्ति भी इसी भाति छठ व्रत को रखने लगे|
- पौराणिक ऋषि विनोद दुबे का कहना है कि लिखित महाभारत कथाओं के अनुसार जब कर्ण को अंग देश का राजा बनाया गया तब वो नित-दिन सुबह और शाम सूर्य देव की आराधना करते थे| खास कर हर षष्ठी और सप्तमी को सूर्य पुत्र अंग राज कर्ण भगवान सूर्य की विशेष पूजा करते थे| अपने राजा को इस तरह पूजा करते देख अंग देश की जनता भी प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त पर भगवान सूर्य की आराधना करने लगे| और देखते ही देखते यह पूजा पुरे क्षेत्र में प्रशिद्ध हो गयी|
- पंडित दिनेश दुबे के अनुसार साधु की हत्या का प्राश्चित करने हेतु जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ वनवास गुजार रहे थे| उन दिनों पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा ले कर रानी कुंती ने सरस्वती नदी में भगवान सूर्य को अर्ग दिया था| इस पूजा के कुछ महीनो बाद ही कुंती पुत्रवती हुई थी| इस पर्व को द्रौपदी द्वारा भी किया गया है| कहते है, इस पर्व को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है|